क्या दिखाता है फ़लक-ए-गर्म तू नान-ए-ख़ुर्शीद
खाना खाते हैं सदा अहल-ए-तवक्कुल ठंडा
Habib Jalib
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Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
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Faiz Ahmad Faiz
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Javed Akhtar
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बसान-ए-आइना हम ने तो चश्म वा कर ली
रख क़दम होश्यार हो कर इश्क़ की मंज़िल में आह
बे-मेहर-ओ-वफ़ा है वो दिल-आराम हमारा
सर-ए-मिज़्गाँ ये नाले अब भी आँसू को तरसते हैं
जब तलक चर्ब न जूँ शम्-ए-ज़बाँ कीजिएगा
आ के सलासिल ऐ जुनूँ क्यूँ न क़दम ले ब'अद-ए-क़ैस
सय्याद के जिगर में करे था सिनाँ का काम
दम ले ऐ कोहकन अब तेशा-ज़नी ख़ूब नहीं
शमीम-ए-ज़ुल्फ़-ए-मुअम्बर जो रू-ए-यार से लूँ
कर के आज़ाद हर इक शहपर-ए-बुलबुल कतरा
रंग मैला न हुआ जामा-ए-उर्यानी का
बना कर मन को मनका और रग-ए-तन के तईं रिश्ता