ग़ुरूर-ए-हुस्न न कर जज़्बा-ए-ज़ुलेख़ा देख
किया है इश्क़ ने यूसुफ़ ग़ुलाम आशिक़ का
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हाथों को उठा जान से आख़िर को रहूँगा
न क्यूँ कि अश्क-ए-मुसलसल हो रहनुमा दिल का
ग़र्क़ न कर दिखला कर दिल को कान का बाला ज़ुल्फ़ का हल्क़ा
की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ
ब'अद-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
कभू न उस रुख़-ए-रौशन पे छाइयाँ देखीं
दिल इश्क़-ए-ख़ुश-क़दाँ में जो ख़्वाहान-ए-नाला था
ये अब्र है या फ़ील-ए-सियह-मस्त है साक़ी
इसी मज़मून से मालूम उस की सर्द-मेहरी है
हम वो फ़लक हैं अहल-ए-तवक्कुल कि मिस्ल-ए-माह
हरम को शैख़ मत जा है बुत-ए-दिल-ख़्वाह सूरत में
शैख़-साहिब की नमाज़-ए-सहरी को है सलाम