ये अब्र है या फ़ील-ए-सियह-मस्त है साक़ी
बिजली के जो है पाँव में ज़ंजीर हवा पर
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जिस्म उस के ग़म में ज़र्द-अज़-ना-तवानी हो गया
देख तू यार-ए-बादा-कश मैं ने भी काम क्या किया
ज़ुल्फ़ छुटती तिरे रुख़ पर तो दिल अपना फिरता
बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
सौ बार बोसा-ए-लब-ए-शीरीं वो दे तो लूँ
देख तू यार-ए-बादा-कश! मैं ने भी काम क्या किया
हार बना इन पारा-ए-दिल का माँग न गजरा फूलों का
हाथों को उठा जान से आख़िर को रहूँगा
गर्दिश-ए-चर्ख़ नहीं कम भी हंडोले से कि महर
मैं उस की चश्म का बीमार-ए-ना-तवाँ हूँ तबीब
न क्यूँ कि अश्क-ए-मुसलसल हो रहनुमा दिल का
ग़रज़ न फ़ुर्क़त में कुफ़्र से थी न काम इस्लाम से रहा था