देख तू यार-ए-बादा-कश मैं ने भी काम क्या किया
दे के कबाब-ए-दिल तुझे हक़्क़-ए-नमक अदा किया
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हरम को शैख़ मत जा है बुत-ए-दिल-ख़्वाह सूरत में
ज़ुल्फ़ का क्या उस की चटका लग गया
की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ
उस काकुल-ए-पुर-ख़म का ख़लल जाए तो अच्छा
चमन में देखते ही पड़ गई कुछ ओस ग़ुंचों पर
आता है तो आ वादा-फ़रामोश वगर्ना
हवा पर है ये बुनियाद-ए-मुसाफ़िर ख़ाना-ए-हस्ती
हम दिखाएँगे तमाशा तुझ को फिर सर्व-ए-चमन
हाथों को उठा जान से आख़िर को रहूँगा
शराब लाओ कबाब लाओ हमारे दिल को न अब घटाओ
छोड़ा न तुझे ने राम क्या ये भी न हुआ वो भी न हुआ
रेख़्ता के क़स्र की बुनियाद उठाई ऐ 'नसीर'