वस्ल की रात हम-नशीं क्यूँकि कटी न पूछ कुछ
बरसर-ए-सुल्ह में रहा उस पे भी वो लड़ा किया
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बोसा-ए-ख़ाल-ए-लब-ए-जानाँ की कैफ़िय्यत न पूछ
शराब लाओ कबाब लाओ हमारे दिल को न अब घटाओ
गो सियह-बख़्त हूँ पर यार लुभा लेता है
छोड़ा न तुझे ने राम क्या ये भी न हुआ वो भी न हुआ
शैख़-साहिब की नमाज़-ए-सहरी को है सलाम
बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
क्यूँ न कहें बशर को हम आतिश-ओ-आब ओ ख़ाक-ओ-बाद
रेख़्ता के क़स्र की बुनियाद उठाई ऐ 'नसीर'
उस काकुल-ए-पुर-ख़म का ख़लल जाए तो अच्छा
इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया
की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ
तार-ए-मिज़्गाँ पे रवाँ यूँ है मिरा तिफ़्ल-ए-सरिश्क