ये चर्ख़-ए-नीलगूँ इक ख़ाना-ए-पुर-दूद है यारो
न पूछो माजरा कुछ चश्म से आँसू बहाने का
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बे-मेहर-ओ-वफ़ा है वो दिल-आराम हमारा
दिल को किस सूरत से कीजे चश्म-ए-दिलबर से जुदा
गले में तू ने वहाँ मोतियों का पहना हार
की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ
क्यूँ मय के पीने से करूँ इंकार नासेहा
सय्याद के जिगर में करे था सिनाँ का काम
हो गुफ़्तुगू हमारी और अब उस की क्यूँकि आह
कर के आज़ाद हर इक शहपर-ए-बुलबुल कतरा
जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम
हम फड़क कर तोड़ते सारी क़फ़स की तीलियाँ
देख तू यार-ए-बादा-कश मैं ने भी काम क्या किया
आता है तो आ वादा-फ़रामोश वगर्ना