ये दाग़ नहीं तन पर मैं देखने को तेरे
ऐ रंग-ए-गुल-ए-ख़ूबी आँखें हूँ लगा लाया
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तिरे ही नाम की सिमरण है मुझ को और तस्बीह
सरज़मीन-ए-ज़ुल्फ़ में क्या दिल ठिकाने लग गया
क्या दिखाता है फ़लक-ए-गर्म तू नान-ए-ख़ुर्शीद
लिया न हाथ से जिस ने सलाम आशिक़ का
मता-ए-दिल बहुत अर्ज़ां है क्यूँ नहीं लेते
उस काकुल-ए-पुर-ख़म का ख़लल जाए तो अच्छा
दिल इश्क़-ए-ख़ुश-क़दाँ में जो ख़्वाहान-ए-नाला था
तू ज़िद से शब-ए-वस्ल न आया तो हुआ क्या
दिल जल्वा-गाह-ए-सूरत-ए-जानाना हो गया
इश्क़ ही दोनों तरफ़ जल्वा-ए-दिलदार हुआ
की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ
जिगर का जूँ शम्अ काश या-रब हो दाग़ रौशन मुराद हासिल