इसी मज़मून से मालूम उस की सर्द-मेहरी है
मुझे नामा जो उस ने काग़ज़-ए-कश्मीर पर लिक्खा
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तार-ए-मिज़्गाँ पे रवाँ यूँ है मिरा तिफ़्ल-ए-सरिश्क
सैर की हम ने जो कल महफ़िल-ए-ख़ामोशाँ की
आ के सलासिल ऐ जुनूँ क्यूँ न क़दम ले ब'अद-ए-क़ैस
शैख़-साहिब की नमाज़-ए-सहरी को है सलाम
हम हैं और मजनूँ अज़ल से ख़ाना-पर्वर्द-ए-जुनूँ
ले गया दे एक बोसा अक़्ल ओ दीन ओ दिल वो शोख़
ये निगल जाएगी इक दिन तिरी चौड़ाई चर्ख़
बसान-ए-आइना हम ने तो चश्म वा कर ली
मय-कशी का है ये शौक़ उस को कि आईने में
सरज़मीन-ए-ज़ुल्फ़ में क्या दिल ठिकाने लग गया
तार-ए-नफ़स उलझ गया मेरे गुलू में आ के जब