मय-कशी का है ये शौक़ उस को कि आईने में
कान के झुमके को अंगूर का ख़ोशा समझा
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फ़ुर्सत एक दम की है जूँ हबाब पानी याँ
आँखों से तुझ को याद मैं करता हूँ रोज़-ओ-शब
क्यूँ मय के पीने से करूँ इंकार नासेहा
कुछ सरगुज़िश्त कह न सके रू-ब-रू क़लम
सब पे रौशन है कि राह-ए-इश्क़ में मानिंद-ए-शम्अ
दिल में है क्या जानिए किस का ख़याल-ए-नक़्श-ए-पा
जूँ मौज हाथ मारिए क्या बहर-ए-इश्क़ में
लगाई किस बुत-ए-मय-नोश ने है ताक उस पर
सय्याद के जिगर में करे था सिनाँ का काम
देखोगे कि मैं कैसा फिर शोर मचाता हूँ
जो गुज़रे है बर आशिक़-ए-कामिल नहीं मालूम
दे मुझ को भी इस दौर में साक़ी सिपर-ए-जाम