कम नहीं है अफ़सर-शाही से कुछ ताज-ए-गदा
गर नहीं बावर तुझे मुनइम तो दोनों तोल ताज
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जब तलक चर्ब न जूँ शम्-ए-ज़बाँ कीजिएगा
तेरे ख़याल-ए-नाफ़ से चक्कर में किया है दिल
तिरे ही नाम की सिमरण है मुझ को और तस्बीह
हार बना इन पारा-ए-दिल का माँग न गजरा फूलों का
हाथों को उठा जान से आख़िर को रहूँगा
देख तू यार-ए-बादा-कश मैं ने भी काम क्या किया
जिगर का जूँ शम्अ काश या-रब हो दाग़ रौशन मुराद हासिल
ले गया दे एक बोसा अक़्ल ओ दीन ओ दिल वो शोख़
जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम
ख़ाल-ए-मश्शाता बना काजल का चश्म-ए-यार पर
क्या दिखाता है फ़लक-ए-गर्म तू नान-ए-ख़ुर्शीद
लगा न दिल को तू अपने किसी से देख 'नसीर'