मेरे नाले के न क्यूँ हो चर्ख़-ए-अख़्ज़र ज़ेर-ए-पा
ख़ुत्बा ख़्वान-ए-इश्क़ है रखता है मिम्बर ज़ेर-ए-पा
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ग़ुरूर-ए-हुस्न न कर जज़्बा-ए-ज़ुलेख़ा देख
हम फड़क कर तोड़ते सारी क़फ़स की तीलियाँ
शराब लाओ कबाब लाओ हमारे दिल को न अब घटाओ
सुपर रखता हूँ मैं भी आफ़्ताबी साग़र-ए-मय की
ख़याल-ए-नाफ़-ए-बुताँ से हो क्यूँ कि दिल जाँ-बर
निकहत-ए-गुल हैं या सबा हैं हम
हो गुफ़्तुगू हमारी और अब उस की क्यूँकि आह
इक पल में झड़ी अब्र-ए-तुनक-माया की शेख़ी
सुब्ह-ए-गुलशन में हो गर वो गुल-ए-ख़ंदाँ पैदा
मुल्ला की दौड़ जैसे है मस्जिद तलक 'नसीर'
ग़रज़ न फ़ुर्क़त में कुफ़्र से थी न काम इस्लाम से रहा था
पूछने वालों को क्या कहिए कि धोके में नहीं