पूछने वालों को क्या कहिए कि धोके में नहीं
कुफ़्र ओ इस्लाम हक़ीक़त में हैं यकसाँ हम को
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तेरे ख़याल-ए-नाफ़ से चक्कर में किया है दिल
ये अब्र है या फ़ील-ए-सियह-मस्त है साक़ी
इक पल में झड़ी अब्र-ए-तुनक-माया की शेख़ी
सदा है इस आह-ओ-चश्म-ए-तर से फ़लक पे बिजली ज़मीं पे बाराँ
आता है तो आ वादा-फ़रामोश वगर्ना
वक़्त-ए-नमाज़ है उन का क़ामत-गाह-ए-ख़दंग-ओ-गाह-ए-कमाँ
ये चर्ख़-ए-नीलगूँ इक ख़ाना-ए-पुर-दूद है यारो
जा-ब-जा दश्त में ख़ेमे हैं बगूले के खड़े
न क्यूँ कि अश्क-ए-मुसलसल हो रहनुमा दिल का
शब जो रुख़-ए-पुर-ख़ाल से वो बुर्के को उतारे सोते हैं
दूद-ए-आह-ए-जिगरी काम न आया यारो