दिल-ए-पुर-आबला लाया हूँ दिखाने तुम को
बंद ऐ शीशा-गरो! अपनी दुकाँ कीजिएगा
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क्या दिखाता है फ़लक-ए-गर्म तू नान-ए-ख़ुर्शीद
तू तो इक परचा भी वाँ से नामा-बर लाया न आह
चमन में देखते ही पड़ गई कुछ ओस ग़ुंचों पर
ब'अद-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
हो चुकी बाग़ में बहार अफ़सोस
दिल को किस सूरत से कीजे चश्म-ए-दिलबर से जुदा
गर्दिश-ए-चर्ख़ नहीं कम भी हंडोले से कि महर
दूद-ए-आह-ए-जिगरी काम न आया यारो
बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
तिरे दाँत सारे सफ़ेद हैं पए-ज़ेब पान से मल कर आ
जब कि ले ज़ुल्फ़ तिरी मुसहफ़-ए-रुख़ का बोसा
सुपर रखता हूँ मैं भी आफ़्ताबी साग़र-ए-मय की