दिला उस की काकुल से रख जम्अ ख़ातिर
परेशाँ से हासिल कब इक दाम होगा
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ब'अद-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ
जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम
लब-ए-दरिया पे देख आ कर तमाशा आज होली का
कभू न उस रुख़-ए-रौशन पे छाइयाँ देखीं
ज़ुल्फ़ का क्या उस की चटका लग गया
वस्ल की रात हम-नशीं क्यूँकि कटी न पूछ कुछ
शराब लाओ कबाब लाओ हमारे दिल को न अब घटाओ
चश्म में कब अश्क भर लाते हैं हम
तिरे ही नाम की सिमरण है मुझ को और तस्बीह
इक पल में झड़ी अब्र-ए-तुनक-माया की शेख़ी