लब-ए-दरिया पे देख आ कर तमाशा आज होली का
भँवर काले के दफ़ बाजे है मौज ऐ यार पानी में
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ये अब्र है या फ़ील-ए-सियह-मस्त है साक़ी
यारो नहीं इतना मुझे क़ातिल ने सताया
सर-बुलंदी को यहाँ दिल ने न चाहा मुनइम
रुवाक़-ए-चशम में मत रह कि है मकान-ए-नुज़ूल
जब तलक चर्ब न जूँ शम्-ए-ज़बाँ कीजिएगा
क्या दिखाता है फ़लक-ए-गर्म तू नान-ए-ख़ुर्शीद
दिला उस की काकुल से रख जम्अ ख़ातिर
हो गुफ़्तुगू हमारी और अब उस की क्यूँकि आह
मेरी तुर्बत पर चढ़ाने ढूँडता है किस के फूल
लिया न हाथ से जिस ने सलाम आशिक़ का
की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ
सुब्ह-ए-गुलशन में हो गर वो गुल-ए-ख़ंदाँ पैदा