'नसीर' अब हम को क्या है क़िस्सा-ए-कौनैन से मतलब
कि चश्म-ए-पुर-फुसून-ए-यार का अफ़्साना रखते हैं
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दिला उस की काकुल से रख जम्अ ख़ातिर
दिन रात यहाँ पुतलियों का नाच रहे है
दिल जल्वा-गाह-ए-सूरत-ए-जानाना हो गया
रंग मैला न हुआ जामा-ए-उर्यानी का
वक़्त-ए-नमाज़ है उन का क़ामत-गाह-ए-ख़दंग-ओ-गाह-ए-कमाँ
हवा पर है ये बुनियाद-ए-मुसाफ़िर ख़ाना-ए-हस्ती
ज़ुल्फ़ छुटती तिरे रुख़ पर तो दिल अपना फिरता
बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
मत पूछ वारदात-ए-शब-ए-हिज्र ऐ 'नसीर'
जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम
गले में तू ने वहाँ मोतियों का पहना हार
हरम को शैख़ मत जा है बुत-ए-दिल-ख़्वाह सूरत में