मत पूछ वारदात-ए-शब-ए-हिज्र ऐ 'नसीर'
मैं क्या कहूँ जो कार-ए-नुमायान-ए-नाला था
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तिरे ही नाम की सिमरण है मुझ को और तस्बीह
ग़ुरूर-ए-हुस्न न कर जज़्बा-ए-ज़ुलेख़ा देख
ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दूता में 'नसीर' पीटा कर
देख तू यार-ए-बादा-कश! मैं ने भी काम क्या किया
सय्याद के जिगर में करे था सिनाँ का काम
ख़ुदा के वास्ते चेहरे से टुक नक़ाब उठा
ग़ज़ल इस बहर में क्या तुम ने लिखी है ये 'नसीर'
बुर्क़ा को उलट मुझ से जो करता है वो बातें
हम दिखाएँगे तमाशा तुझ को फिर सर्व-ए-चमन
मेरी तुर्बत पर चढ़ाने ढूँडता है किस के फूल
न दिखाइयो हिज्र का दर्द-ओ-अलम तुझे देता हूँ चर्ख़-ए-ख़ुदा की क़सम