बुर्क़ा को उलट मुझ से जो करता है वो बातें
अब मैं हमा-तन-गोश बनूँ या हमा-तन-चश्म
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मत पूछ वारदात-ए-शब-ए-हिज्र ऐ 'नसीर'
सब पे रौशन है कि राह-ए-इश्क़ में मानिंद-ए-शम्अ
ये अब्र है या फ़ील-ए-सियह-मस्त है साक़ी
गो सियह-बख़्त हूँ पर यार लुभा लेता है
ख़ानदान-ए-क़ैस का मैं तो सदा से पीर हूँ
जुदा नहीं है हर इक मौज देख आब के बीच
ऐ ख़ाल-ए-रुख़-ए-यार तुझे ठीक बनाता
मेरी तुर्बत पर चढ़ाने ढूँडता है किस के फूल
ख़याल-ए-नाफ़-ए-बुताँ से हो क्यूँ कि दिल जाँ-बर
सुपर रखता हूँ मैं भी आफ़्ताबी साग़र-ए-मय की
बे-सबब हाथ कटारी को लगाना क्या था
जा-ब-जा दश्त में ख़ेमे हैं बगूले के खड़े