क़द सर्व चश्म नर्गिस रुख़ गुल दहान ग़ुंचा
करता हूँ देख तुम कूँ सैर-ए-चमन ममोला
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दूर ख़ामोश बैठा रहता हूँ
कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया
फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ
रोवने नीं मुझ दिवाने के किया सियानों का काम
सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं
क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला
जलते हैं और हम सीं जब माँगते हो प्याला
ख़ुदावंदा करम कर फ़ज़्ल कर अहवाल पर मेरे
तीरा-रंगों के हुआ हक़ में ये तप करना दवा
जब कि ऐसा हो गंदुमी माशूक़
तुम्हारी जब सीं आई हैं सजन दुखने को लाल अँखियाँ
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो