दूर ख़ामोश बैठा रहता हूँ
इस तरह हाल दिल का कहता हूँ
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आश्नाई ब-ज़ोर नहिं होती
यार रूठा है हम सें मनता नहिं
दिल नीं पकड़ी है यार की सूरत
देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं
नहीं घर में फ़लक के दिल-कुशाई
जाल में जिस के शौक़ आई है
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
क्यूँ कर बड़ा न जाने मुंकिर नपे को अपने
जंगल के बीच वहशत घर में जफ़ा ओ कुल्फ़त
है हमन का शाम कोई ले जा
क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये
गुनाहगारों की उज़्र-ख़्वाही हमारे साहिब क़ुबूल कीजे