जंगल के बीच वहशत घर में जफ़ा ओ कुल्फ़त
ऐ दिल बता कि तेरे मारे हम अब किधर जाँ
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यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो
हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का
ज़िंदगानी सराब की सी तरह
बोसाँ लबाँ सीं देने कहा कह के फिर गया
कोयल नीं आ के कोक सुनाई बसंत रुत
जो कि बिस्मिल्लाह कर खाए तआम
क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीर अटपटा है
नहीं घर में फ़लक के दिल-कुशाई
नमकीं गोया कबाब हैं फीके शराब के
शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन
अगर दिल इश्क़ सीं ग़ाफ़िल रहा है
क्यूँ न आ कर उस के सुनने को करें सब यार भीड़