ज़िंदगानी सराब की सी तरह
बाद-बंदी हुबाब की सी तरह
तुझ उपर ख़ून बे-गुनाहों का
चढ़ रहा है शराब की सी तरह
कौन चाहेगा घर बसर तुझ को
मुझ से ख़ाना-ख़राब की सी तरह
टुक ख़बर ले कि तेरे हाथों सीं
जल रहा हूँ कबाब की सी तरह
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आग़ोश सीं सजन के हमन कूँ किया कनार
रता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर लावबाली का
हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का
अगर देखे तुम्हारी ज़ुल्फ़ ले डस
कभी बे-दाम ठहरावें कभी ज़ंजीर करते हैं
यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
या सजन तर्क-ए-मुलाक़ात करो
आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है
ब्यारे तिरे नयन कूँ आहू कहे जो कोई
क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये
इक अर्ज़ सब सीं छुप कर करनी है हम कूँ तुम सीं