क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये
लग चुका अब छूटना मुश्किल है उस का दिल है ये
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यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
हो गए हैं पैर सारे तिफ़्ल-ए-अश्क
तीरा-रंगों के हुआ हक़ में ये तप करना दवा
वस्ल की अर्ज़ का जब वक़्त कभी पाता हूँ
क़ौल 'आबरू' का था कि न जाऊँगा उस गली
है हमन का शाम कोई ले जा
सर कूँ अपने क़दम बना कर के
दाग़ सीं क्यूँ न दिल उजाला हो
आश्नाई ब-ज़ोर नहिं होती
मत मेहर सेती हाथ में ले दिल हमारे कूँ
ख़ुदावंदा करम कर फ़ज़्ल कर अहवाल पर मेरे
अगर अँखियों सीं अँखियों को मिलाओगे तो क्या होगा