दाग़ सीं क्यूँ न दिल उजाला हो
चश्म की रौशनी सियाही है
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साथ मेरे तेरे जो दुख था सो प्यारे ऐश था
गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं
फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र
ग़म के पीछो रास्त कहते हैं कि शादी होवे है
क्यूँ तिरी थोड़ी सी गर्मी सीं पिघल जावे है जाँ
ज़िंदगानी सराब की सी तरह
साँप सर मार अगर जो जावे मर
अगर दिल इश्क़ सीं ग़ाफ़िल रहा है
यार रूठा है हम सें मनता नहिं
अफ़्सोस है कि बख़्त हमारा उलट गया
ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा
दिखाई ख़्वाब में दी थी टुक इक मुँह की झलक हम कूँ