अफ़्सोस है कि बख़्त हमारा उलट गया
आता तो था पे देख के हम कूँ पलट गया
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तुम्हारी जब सीं आई हैं सजन दुखने को लाल अँखियाँ
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
जो कि बिस्मिल्लाह कर खाए तआम
पलंग कूँ छोड़ ख़ाली गोद सीं जब उठ गया मीता
यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
यार रूठा है हम सें मनता नहिं
नमकीं गोया कबाब हैं फीके शराब के
ब्यारे तिरे नयन कूँ आहू कहे जो कोई
गुनाहगारों की उज़्र-ख़्वाही हमारे साहिब क़ुबूल कीजे
सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं
जब सीं तिरे मुलाएम गालों में दिल धँसा है
सर कूँ अपने क़दम बना कर के