जब सीं तिरे मुलाएम गालों में दिल धँसा है
नर्मी सूँ दिल हुआ है तब सूँ रुई का गाला
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ग़म सीं अहल-ए-बैत के जी तो तिरा कुढ़ता नहीं
अगर दिल इश्क़ सीं ग़ाफ़िल रहा है
तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल कर नियाज़-ओ-ख़ाकसारी सीं
क्यूँ तिरी थोड़ी सी गर्मी सीं पिघल जावे है जाँ
आग़ोश सीं सजन के हमन कूँ किया कनार
जो कि बिस्मिल्लाह कर खाए तआम
फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र
यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो
क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला
रखे कोई इस तरह के लालची को कब तलक बहला
फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो