यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो
ऐसी तरह करो कि उसे मेहरबाँ करो
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नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा
हुआ है हिन्द के सब्ज़ों का आशिक़
कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया
कम मत गिनो ये बख़्त-सियाहों का रंग-ए-ज़र्द
कहो तुम किस सबब रूठे हो प्यारे बे-गुनह हम सीं
मेहराब-ए-अबरुवाँ कूँ वसमा हुआ है ज़ेवर
ख़ुदावंदा करम कर फ़ज़्ल कर अहवाल पर मेरे
इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन
मिल गईं आपस में दो नज़रें इक आलम हो गया
क्या बुरी तरह भौं मटकती है
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो