वस्ल की अर्ज़ का जब वक़्त कभी पाता हूँ
जा हैं ख़ामोशी सीं तब लब मिरे आपस में मिल
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दिल्ली में दर्द-ए-दिल कूँ कोई पूछता नहीं
जब कि ऐसा हो गंदुमी माशूक़
ब्यारे तिरे नयन कूँ आहू कहे जो कोई
मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल
क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये
हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का
नमकीं गोया कबाब हैं फीके शराब के
अगर दिल इश्क़ सीं ग़ाफ़िल रहा है
ग़म से हम सूख जब हुए लकड़ी
मोहब्बत सेहर है यारो अगर हासिल हो यक-रूई
जलता है अब तलक तिरी ज़ुल्फ़ों के रश्क से