ग़म से हम सूख जब हुए लकड़ी
दोस्ती का निहाल डाल काट
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तुम नज़र क्यूँ चुराए जाते हो
मैं निबल तन्हा न इस दुनिया की सोहबत सीं हुआ
याद-ए-ख़ुदा कर बंदे यूँ नाहक़ उम्र कूँ खोना क्या
आश्नाई ब-ज़ोर नहिं होती
कनहय्या की तरह प्यारे तिरी अँखियाँ ये साँवरियाँ
क़ौल 'आबरू' का था कि न जाऊँगा उस गली
उस वक़्त दिल पे क्यूँके कहूँ क्या गुज़र गया
दिलदार की गली में मुकर्रर गए हैं हम
है हमन का शाम कोई ले जा
देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती
अगर दिल इश्क़ सीं ग़ाफ़िल रहा है
तुम्हारे दिल में क्या ना-मेहरबानी आ गई ज़ालिम