दिलदार की गली में मुकर्रर गए हैं हम
हो आए हैं अभी तो फिर आ कर गए हैं हम
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तुम्हारी देख कर ये ख़ुश-ख़िरामी आब-रफ़्तारी
ग़म सीं अहल-ए-बैत के जी तो तिरा कुढ़ता नहीं
ऐ सर्द-मेहर तुझ सीं ख़ूबाँ जहाँ के काँपे
दुश्मन-ए-जाँ है तिश्ना-ए-ख़ूँ है
गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं
किया है चाक दिल तेग़-ए-तग़ाफ़ुल सीं तुझ अँखियों नीं
तुम्हारे दिल में क्या ना-मेहरबानी आ गई ज़ालिम
फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र
रोवने नीं मुझ दिवाने के किया सियानों का काम
आया है सुब्ह नींद सूँ उठ रसमसा हुआ
इंसान है तो किब्र सीं कहता है क्यूँ अना
ज़िंदगानी सराब की सी तरह