तुम नज़र क्यूँ चुराए जाते हो
जब तुम्हें हम सलाम करते हैं
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गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं
आग़ोश सीं सजन के हमन कूँ किया कनार
तिरा क़द सर्व सीं ख़ूबी में चढ़ है
या सजन तर्क-ए-मुलाक़ात करो
फिरते थे दश्त दश्त दिवाने किधर गए
सर कूँ अपने क़दम बना कर के
इश्क़ की सफ़ मनीं नमाज़ी सब
उस वक़्त दिल पे क्यूँके कहूँ क्या गुज़र गया
इश्क़ का तीर दिल में लागा है
तुझ हुस्न के बाग़ में सिरीजन
फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र
तुम यूँ सियाह-चश्म ऐ सजन मुखड़े के झुमकों से हुए