तिरा क़द सर्व सीं ख़ूबी में चढ़ है
लटक सुम्बुल सेती ज़ुल्फ़ाँ सीं बढ़ है
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इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन
तुम्हारे दिल में क्या ना-मेहरबानी आ गई ज़ालिम
आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है
मेहराब-ए-अबरुवाँ कूँ वसमा हुआ है ज़ेवर
क्यूँ तिरी थोड़ी सी गर्मी सीं पिघल जावे है जाँ
यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो
गली अकेली है प्यारे अँधेरी रातें हैं
तुझ हुस्न के बाग़ में सिरीजन
हमारे साँवले कूँ देख कर जी में जली जामुन
यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
क्या सबब तेरे बदन के गर्म होने का सजन
दिवाने दिल कूँ मेरे शहर सें हरगिज़ नहीं बनती