तुझ हुस्न के बाग़ में सिरीजन
ख़ुर्शीद गुल-ए-दोपहरिया है
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नहीं घर में फ़लक के दिल-कुशाई
नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा
पलंग कूँ छोड़ ख़ाली गोद सीं जब उठ गया मीता
मेहराब-ए-अबरुवाँ कूँ वसमा हुआ है ज़ेवर
आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है
यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये
नाज़नीं जब ख़िराम करते हैं
ग़म से हम सूख जब हुए लकड़ी
अफ़्सोस है कि बख़्त हमारा उलट गया
मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल
इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो