तिरे रुख़सारा-ए-सीमीं पे मारा ज़ुल्फ़ ने कुंडल
लिया है अज़दहा नीं छीन यारो माल आशिक़ का
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उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो
मिल गया था बाग़ में माशूक़ इक नक-दार सा
जलता है अब तलक तिरी ज़ुल्फ़ों के रश्क से
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
जब सीं तिरे मुलाएम गालों में दिल धँसा है
अफ़्सोस है कि बख़्त हमारा उलट गया
दिखाई ख़्वाब में दी थी टुक इक मुँह की झलक हम कूँ
कम मत गिनो ये बख़्त-सियाहों का रंग-ए-ज़र्द
हम नीं सजन सुना है उस शोख़ के दहाँ है
यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो
ख़ुद अपनी आदमी को बड़ी क़ैद-ए-सख़्त है
नहीं घर में फ़लक के दिल-कुशाई