इश्क़ की सफ़ मनीं नमाज़ी सब
'आबरू' को इमाम करते हैं
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क्यूँ कर बड़ा न जाने मुंकिर नपे को अपने
साथ मेरे तेरे जो दुख था सो प्यारे ऐश था
ख़ुर्शीद-रू के आगे हो नूर का सवाली
सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं
यार रूठा है हम सें मनता नहिं
दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम
जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम
इश्क़ का तीर दिल में लागा है
मैं निबल तन्हा न इस दुनिया की सोहबत सीं हुआ
इक अर्ज़ सब सीं छुप कर करनी है हम कूँ तुम सीं
क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला
आश्नाई ब-ज़ोर नहिं होती