नमकीं गोया कबाब हैं फीके शराब के
बोसा है तुझ लबाँ का मज़े-दार चटपटा
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यार रूठा है हम सें मनता नहिं
क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये
मिल गईं आपस में दो नज़रें इक आलम हो गया
कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया
तुझ हुस्न के बाग़ में सिरीजन
जलते हैं और हम सीं जब माँगते हो प्याला
पलंग कूँ छोड़ ख़ाली गोद सीं जब उठ गया मीता
देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं
देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती
मेहराब-ए-अबरुवाँ कूँ वसमा हुआ है ज़ेवर
कभी बे-दाम ठहरावें कभी ज़ंजीर करते हैं
आया है सुब्ह नींद सूँ उठ रसमसा हुआ