मुफ़्लिसी सीं अब ज़माने का रहा कुछ हाल नईं
आसमाँ चर्ख़ी के जूँ फिरता है लेकिन माल नईं
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फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र
बहार आई गली की तरह दिल खोल
ज़िंदगानी सराब की सी तरह
इश्क़ का तीर दिल में लागा है
क्या सबब तेरे बदन के गर्म होने का सजन
फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ
सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं
सर कूँ अपने क़दम बना कर के
मालूम अब हुआ है आ हिन्द बीच हम कूँ
शेर को मज़मून सेती क़द्र हो है 'आबरू'
हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का
आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है