कभी बे-दाम ठहरावें कभी ज़ंजीर करते हैं
ये ना-शाएर तिरी ज़ुल्फ़ाँ कूँ क्या क्या नाम धरते हैं
Gulzar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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कहो तुम किस सबब रूठे हो प्यारे बे-गुनह हम सीं
तिरा क़द सर्व सीं ख़ूबी में चढ़ है
तिरा हर उज़्व प्यारे ख़ुश-नुमा है उज़्व-ए-दीगर सीं
ख़ुदावंदा करम कर फ़ज़्ल कर अहवाल पर मेरे
जलते हैं और हम सीं जब माँगते हो प्याला
फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र
तुम नज़र क्यूँ चुराए जाते हो
शौक़ बढ़ता है मिरे दिल का दिल-अफ़गारों के बीच
नहीं घर में फ़लक के दिल-कुशाई
हुआ है हिन्द के सब्ज़ों का आशिक़
साथ मेरे तेरे जो दुख था सो प्यारे ऐश था
नाज़नीं जब ख़िराम करते हैं