तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल कर नियाज़-ओ-ख़ाकसारी सीं
वज़ू दरकार नईं कुछ इस इबादत में तयम्मुम कर
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जब सीं तिरे मुलाएम गालों में दिल धँसा है
मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल
ख़ुर्शीद-रू के आगे हो नूर का सवाली
मुफ़्लिसी सीं अब ज़माने का रहा कुछ हाल नईं
आया है सुब्ह नींद सूँ उठ रसमसा हुआ
हुआ है हिन्द के सब्ज़ों का आशिक़
दिल कब आवारगी को भूला है
यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
जब कि ऐसा हो गंदुमी माशूक़
तिरा हर उज़्व प्यारे ख़ुश-नुमा है उज़्व-ए-दीगर सीं
हो गए हैं पैर सारे तिफ़्ल-ए-अश्क
ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा