अब दीन हुआ ज़माना-साज़ी
आफ़ाक़ तमाम दहरिया है
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देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती
मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल
मिल गईं आपस में दो नज़रें इक आलम हो गया
ख़ुदावंदा करम कर फ़ज़्ल कर अहवाल पर मेरे
अगर देखे तुम्हारी ज़ुल्फ़ ले डस
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
ऐ सर्द-मेहर तुझ सीं ख़ूबाँ जहाँ के काँपे
साथ मेरे तेरे जो दुख था सो प्यारे ऐश था
तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है
क्यूँ तिरी थोड़ी सी गर्मी सीं पिघल जावे है जाँ
गुनाहगारों की उज़्र-ख़्वाही हमारे साहिब क़ुबूल कीजे
सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं