यूँ तो होते हैं मोहब्बत में जुनूँ के आसार
और कुछ लोग भी दीवाना बना देते हैं
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फटा पड़ता है जोबन और जोश-ए-नौ-जवानी है
हरीफ़-ए-राज़ हैं ऐ बे-ख़बर दर-ओ-दीवार
वो जितने दूर खिंचते हैं तअल्लुक़ और बढ़ता है
है दिल में अगर उस से मोहब्बत का इरादा
वो जो कुछ कुछ निगह मिलाने लगे
गेसू से अंबरी है सबा और सबा से हम
उन को हाल-ए-दिल-ए-पुर-सोज़ सुना कर उट्ठे
आज तक कोई न अरमान हमारा निकला
रहता तो है उस बज़्म में चर्चा मिरे दिल का
कभी बोलना वो ख़फ़ा ख़फ़ा कभी बैठना वो जुदा जुदा
मुँह छुपाना पड़े न दुश्मन से
ग़ौग़ा-ए-पंद गो न रहा नौहागर रहा