मुँह छुपाना पड़े न दुश्मन से
ऐ शब-ए-ग़म सहर न हो जाए
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गेसू से अंबरी है सबा और सबा से हम
क़हर है ज़हर है अग़्यार को लाना शब-ए-वस्ल
अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या
दे हश्र के वादे पे उसे कौन भला क़र्ज़
आख़िर मिले हैं हाथ किसी काम के लिए
रंज राहत-असर न हो जाए
दिल को आज़ार लगा वो कि छुपा भी न सकूँ
ग़ौग़ा-ए-पंद गो न रहा नौहागर रहा
गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़
समझेंगे न अग़्यार को अग़्यार कहाँ तक
बिगड़ कर अदू से दिखाते हैं आप
वाँ तबीअत दम-ए-तक़रीर बिगड़ जाती है