जुदा Poetry (page 3)

तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता

वसीम बरेलवी

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे

वसीम बरेलवी

ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे

वली उज़लत

कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग

वली उज़लत

सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

बुतो ख़ुदा से डरो संग दिल सिवा न करो

वाजिद अली शाह अख़्तर

अपने अंदाज़ में औरों से जुदा लगते हो

वजीह सानी

हम ने देखा है मोहब्बत का सज़ा हो जाना

वहीद अख़्तर

उस एक शख़्स का कोई पता नहीं मिलता

विशाल खुल्लर

मेरे दुख की दवा भी रखता है

विशाल खुल्लर

मैं इंसाँ था ख़ुदा होने से पहले

विशाल खुल्लर

या तिरी आरज़ू सा हो जाऊँ

विनीत आश्ना

वो निहत्ता नहीं अकेला है

विकास शर्मा राज़

आइने से बात करना इतना आसाँ भी नहीं

उषा भदोरिया

एक कहानी

उरूज जाफ़री

नज़र न आए तो क्या वो मिरे क़यास में है

उम्मीद फ़ाज़ली

नाज़ कर नाज़ कि ये नाज़ जुदा है सब से

उम्मीद फ़ाज़ली

हाए इक शख़्स जिसे हम ने भुलाया भी नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

इस तरह रस्म मोहब्बत की अदा होती है

त्रिपुरारि

वो आई शाम-ए-ग़म वक़्फ़-ए-बला होने का वक़्त आया

तिलोकचंद महरूम

आख़िर ख़ुद अपने ही लहू में डूब के सर्फ़-ए-विग़ा होगे

तौसीफ़ तबस्सुम

अपने मंज़र से जुदा था इक दिन

तौक़ीर अब्बास

ज़ेहन में हो कोई मंज़िल तो नज़र में ले जाऊँ

तसव्वुर ज़ैदी

शहरों के सारे जंगल गुंजान हो गए हैं

तनवीर अंजुम

यूँ भी तो तिरी राह की दीवार नहीं हैं

तालीफ़ हैदर

खिड़की में एक नार जो महव-ए-ख़याल है

ताज सईद

मेहवर पे भी गर्दिश मिरी मेहवर से अलग हो

तफ़ज़ील अहमद

इक परेशानी अलग थी और पशेमानी अलग

तफ़ज़ील अहमद

इक उम्र हुई और मैं अपने से जुदा हूँ

ताबिश सिद्दीक़ी

यार से अब के गर मिलूँ 'ताबाँ'

ताबाँ अब्दुल हई

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