यार से अब के गर मिलूँ 'ताबाँ'
तो फिर उस से जुदा न हूँ 'ताबाँ'
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तेरी आँखें बड़ी सी प्यारी हैं
ख़्वान-ए-फ़लक पे नेमत-ए-अलवान है कहाँ
मिरा ख़ुर्शीद-रू सब माह-रूयाँ बीच यक्का है
मैं हो के तिरे ग़म से नाशाद बहुत रोया
कई फ़ाक़ों में ईद आई है
हरम को छोड़ रहूँ क्यूँ न बुत-कदे में शैख़
दिल की हसरत न रही दिल में मिरे कुछ बाक़ी
लड़का जो ख़ूब-रू है सो मुझ से बचा नहीं
सफ़र दुनिया से करना क्या है 'ताबाँ'
आता नहीं वो यार-ए-सितमगर तो क्या हुआ
आतिश-ए-इश्क़ में जो जल न मरें
मुझ से बीमार है मिरा ज़ालिम