यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह
मिन्नतें कर पाँव पड़ उस के ले आऊँ किस तरह
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साक़ी हो और चमन हो मीना हो और हम हों
मुझे आता है रोना ऐसी तन्हाई पे ऐ 'ताबाँ'
कब पिलावेगा तू ऐ साक़ी मुझे जाम-ए-शराब
तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है
हमारे मय-कदे में हैं जो कुछ की निय्यतें ज़ाहिर
तेरी मख़मूर चश्म ऐ मय-नोश
ख़ुदा देवे अगर क़ुदरत मुझे तो ज़िद है ज़ाहिद की
हुए हैं जा के आशिक़ अब तो हम उस शोख़ चंचल के
न जा वाइज़ की बातों पर हमेशा मय को पी 'ताबाँ'
कई फ़ाक़ों में ईद आई है
क्या करें क्यूँ-कर रहें दुनिया में यारो हम ख़ुशी