न जा वाइज़ की बातों पर हमेशा मय को पी 'ताबाँ'
अबस डरता है तू दोज़ख़ से इक शरई दरक्का है
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मिरा ख़ुर्शीद-रू सब माह-रूयाँ बीच यक्का है
ख़ूबाँ जो पहनते हैं निपट तंग चोलियाँ
आतिश-ए-इश्क़ में जो जल न मरें
महफ़िल के बीच सुन के मिरे सोज़-ए-दिल का हाल
मैं हो के तिरे ग़म से नाशाद बहुत रोया
दाग़-ए-दिल अपना जब दिखाता हूँ
आता है मोहतसिब पए-ताज़ीर मय-कशो
किसी का काम दिल इस चर्ख़ से हुआ भी है
आइने को तिरी सूरत से न हो क्यूँ कर हैरत
यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह
किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें
जिस का गोरा रंग हो वो रात को खिलता है ख़ूब