किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें
है वस्ल से ज़ियादा मज़ा इंतिज़ार का
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आता नहीं वो यार-ए-सितमगर तो क्या हुआ
न जा वाइज़ की बातों पर हमेशा मय को पी 'ताबाँ'
तुम से अब कामयाब और ही है
कब पिलावेगा तू ऐ साक़ी मुझे जाम-ए-शराब
हुए हैं जा के आशिक़ अब तो हम उस शोख़ चंचल के
दिलबर से दर्द-ए-दिल न कहूँ हाए कब तलक
आई बहार शोरिश-तिफ़लाँ को क्या हुआ
तेरी आँखें बड़ी सी प्यारी हैं
वे शख़्स जिन से फ़ख़्र जहाँ को था अब वे हाए
हवा भी इश्क़ की लगने न देता मैं उसे हरगिज़
आरज़ू है मैं रखूँ तेरे क़दम पर गर जबीं
ख़ुदा देवे अगर क़ुदरत मुझे तो ज़िद है ज़ाहिद की