कब पिलावेगा तू ऐ साक़ी मुझे जाम-ए-शराब
जाँ-ब-लब हूँ आरज़ू में मय की पैमाने की तरह
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अगर तू शोहरा-ए-आफ़ाक़ है तो तेरे बंदों में
मोहब्बत तू मत कर दिल उस बेवफ़ा से
ज़ाहिद तिरा तो दीन सरासर फ़रेब है
लड़का जो ख़ूब-रू है सो मुझ से बचा नहीं
आता नहीं वो यार-ए-सितमगर तो क्या हुआ
फिर मेहरबाँ हुआ है 'ताबाँ' मिरा सितमगर
आईना रू-ब-रू रख और अपनी छब दिखाना
हुए हैं जा के आशिक़ अब तो हम उस शोख़ चंचल के
हो रूह के तईं जिस्म से किस तरह मोहब्बत
किसी का काम दिल इस चर्ख़ से हुआ भी है
तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है
दिल की हसरत न रही दिल में मिरे कुछ बाक़ी