आईना रू-ब-रू रख और अपनी छब दिखाना
क्या ख़ुद-पसंदियाँ हैं क्या ख़ुद-नुमाईयाँ हैं
Anwar Masood
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Parveen Shakir
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दिल की हसरत न रही दिल में मिरे कुछ बाक़ी
करता है गर तू बुत-शिकनी तो समझ के कर
तेरी मख़मूर चश्म ऐ मय-नोश
तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है
यार से अब के गर मिलूँ 'ताबाँ'
ये जो हैं अहल-ए-रिया आज फ़क़ीरों के बीच
नेमत-ए-अल्वान भी ख़्वान-ए-फ़लक की देख ली
कई फ़ाक़ों में ईद आई है
हमारे मय-कदे में हैं जो कुछ की निय्यतें ज़ाहिर
आरज़ू है मैं रखूँ तेरे क़दम पर गर जबीं
ज़ाहिद तिरा तो दीन सरासर फ़रेब है
रोया न हूँ जहाँ में गरेबाँ को अपने फाड़