कई फ़ाक़ों में ईद आई है
आज तू हो तो जान हम-आग़ोश
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तेरी मख़मूर चश्म ऐ मय-नोश
तुम से अब कामयाब और ही है
हुए हैं जा के आशिक़ अब तो हम उस शोख़ चंचल के
एक बुलबुल भी चमन में न रही अब की फ़सल
ग़ज़ालों को तिरी आँखें से कुछ निस्बत नहीं हरगिज़
तेरी आँखें बड़ी सी प्यारी हैं
किसी का काम दिल इस चर्ख़ से हुआ भी है
शब को फिरे वो रश्क-ए-माह ख़ाना-ब-ख़ाना कू-ब-कू
ज़ाहिद तिरा तो दीन सरासर फ़रेब है
ब'अद मुद्दत के माह-रू आया
मैं तो तालिब दिल से हूँगा दीन का
किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें